श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  6.74.50 
 
 
स वृक्षखण्डांस्तरसा जहार
शैलान् शिला: प्राकृतवानरांश्च।
बाहूरुवेगोद‍्गतसम्प्रणुन्ना-
स्ते क्षीणवेगा: सलिले निपेतु:॥ ५०॥
 
 
अनुवाद
 
  हनुमान जी अपने तीव्र वेग से जाते समय कितने ही वृक्षों, पर्वत-शिखरों, शिलाओं और वहाँ रहने वाले सामान्य वानरों को भी अपने साथ-साथ उड़ाते जा रहे थे। हनुमान जी की भुजाओं और जाँघों के वेग के कारण दूर उछाले जाने के कारण जब उनका वेग समाप्त हो गया, तब वे वृक्ष आदि समुद्र के जल में गिर पड़े।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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