श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 49
 
 
श्लोक  6.74.49 
 
 
स पुच्छमुद्यम्य भुजङ्गकल्पं
विनम्य पृष्ठं श्रवणे निकुच्य।
विवृत्य वक्त्रं वडवामुखाभ-
मापुप्लुवे व्योम्नि स चण्डवेग:॥ ४९॥
 
 
अनुवाद
 
  वे सर्प के समान लम्बी पूँछ को उठाकर, अपनी पीठ को झुकाकर, दोनों कानों को सिकोड़कर और वडवाग्नि के समान अपना मुख फैलाकर आकाश में प्रचण्ड वेग से उड़े।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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