वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 6: युद्ध काण्ड
»
सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना
»
श्लोक 46
श्लोक
6.74.46
पद्भॺां तु शैलमापीडॺ वडवामुखवन्मुखम्।
विवृत्योग्रं ननादोच्चैस्त्रासयन् रजनीचरान्॥ ४६॥
अनुवाद
play_arrowpause
उन दोनों ने अपने पैरों से पर्वत को दबा दिया और भयंकर वडवाग्नि के समान मुख फैलाकर, रात के जीवों को डराते हुए, जोर से गर्जना की।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.