श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  6.74.33 
 
 
मृतसञ्जीवनीं चैव विशल्यकरणीमपि।
सुवर्णकरणीं चैव संधानीं च महौषधीम्॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
 
  उनके नाम इस प्रकार हैं- मृतसञ्जीवनी, विशल्यकरणी, सुवर्णकरणी और संधानी नामक महौषधी। ये चारों जड़ी-बूटियाँ बहुत ही उपयोगी और दुर्लभ हैं। मृतसञ्जीवनी जड़ी-बूटी मृत व्यक्ति को भी जीवित कर सकती है। विशल्यकरणी जड़ी-बूटी किसी भी प्रकार के घाव को भर सकती है। सुवर्णकरणी जड़ी-बूटी किसी भी धातु को सोने में बदल सकती है। और संधानी जड़ी-बूटी किसी भी प्रकार के जोड़ को जोड़ सकती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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