श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  6.74.27 
 
 
नान्यो विक्रमपर्याप्तस्त्वमेषां परम: सखा।
त्वत्पराक्रमकालोऽयं नान्यं पश्यामि कञ्चन॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  तुमसे भिन्न कोई भी इस संपूर्ण युद्ध में इतना पूर्ण, शक्तिशाली और पराक्रमी नहीं है। तुम ही इन सबके परम मित्र हो। यह समय तुम्हारे पराक्रम का है। मैं इस पूरे युद्ध में, युद्ध में सक्षम और दूसरा कोई नहीं मानता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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