श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 74: जाम्बवान् के आदेश से हनुमान्जी का हिमालय से दिव्य ओषधियों के पर्वत को लाना और उन ओषधियों की गन्ध से श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरों का पुनः स्वस्थ होना  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  6.74.14-15 
 
 
स्वभावजरया युक्तं वृद्धं शरशतैश्चितम्।
प्रजापतिसुतं वीरं शाम्यन्तमिव पावकम्॥ १४॥
दृष्ट्वा समभिसंक्रम्य पौलस्त्यो वाक्यमब्रवीत्।
कच्चिदार्य शरैस्तीक्ष्णैर्न प्राणा ध्वंसितास्तव॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  ब्रह्माजी के पुत्र वीर जाम्बवान तो एक ओर पहले से ही स्वाभाविक वृद्धावस्था से युक्त थे, दूसरी ओर उनके शरीर में सैकड़ों बाण भी धँसे हुए थे। इसलिए वे बुझती हुई आग की तरह मंद दिखाई दे रहे थे। उन्हें देखकर विभीषण तुरंत ही उनके पास गए और बोले - "आर्य! क्या इन तीखे बाणों के प्रहार से आपके प्राण निकल तो नहीं गए?"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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