अतः, शत्रुओं को दंडित करने वाले लक्ष्मण जी दो घंटे तक अचेत अवस्था में पड़े रहे। फिर होश में आने पर उस महा शक्तिशाली वीर ने बाणों की वर्षा से शत्रु के रथ की ध्वजा को नष्ट कर दिया और चार उत्तम गुणवत्ता वाले तीरों से युद्ध के मैदान में उसके घोड़ों और सारथी को भी यमलोक भेज दिया।