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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 6: युद्ध काण्ड
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सर्ग 71: अतिकाय का भयंकर युद्ध और लक्ष्मण के द्वारा उसका वध
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श्लोक 61
श्लोक
6.71.61
तत: शिरस्ते निशितै: पातयिष्याम्यहं शरै:।
मारुत: कालसम्पक्वं वृन्तात् तालफलं यथा॥ ६१॥
अनुवाद
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‘उसके बाद मैं अपने तीखे बाणोंसे तेरा मस्तक उसी तरह काट गिराऊँगा, जैसे वायु कालक्रमसे पके हुए ताड़के फलको उसके वृन्त (बौंडी)-से नीचे गिरा देती है॥ ६१॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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