श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 71: अतिकाय का भयंकर युद्ध और लक्ष्मण के द्वारा उसका वध  »  श्लोक 102-103
 
 
श्लोक  6.71.102-103 
 
 
अथैनमभ्युपागम्य वायुर्वाक्यमुवाच ह॥ १०२॥
ब्रह्मदत्तवरो ह्येष अवध्यकवचावृत:।
ब्राह्मेणास्त्रेण भिन्ध्येनमेष वध्यो हि नान्यथा।
अवध्य एष ह्यन्येषामस्त्राणां कवची बली॥ १०३॥
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् वायु देव उनके पास पहुँचे और उन्होंने कहा - "सुमित्रा नन्दन! इस राक्षस को ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त है। यह अभेद्य कवच से ढका हुआ है। इसलिए इसे ब्रह्मास्त्र से भेद डालो, अन्यथा इसे नहीं मारा जा सकता है। यह कवचधारी बलवान राक्षस अन्य सभी शस्त्रों से मरने लायक नहीं है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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