स भर्तुर्वचनं श्रुत्वा निष्पपाताङ्गदस्तदा।
अनीकान्मेघसंकाशादंशुमानिव वीर्यवान्॥ ८३॥
अनुवाद
स्वामी के इस आदेश को सुनकर बलवान अंगद उस समय मेघों की घटा के समान प्रतीत हो रही वानर-सेना से उसी प्रकार निकले, जिस तरह सूर्यदेव बादलों के पीछे से प्रकट हो रहे हैं॥ ८३॥