श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 66: कुम्भकर्ण के भय से भागे हुए वानरों का अङ्गद द्वारा प्रोत्साहन और आवाहन, कुम्भकर्ण द्वारा वानरों का संहार  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  6.66.5 
 
 
आत्मनस्तानि विस्मृत्य वीर्याण्यभिजनानि च।
क्व गच्छत भयत्रस्ता: प्राकृता हरयो यथा॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  वानर वीरो! अपने ऊँचे कुल और उस अलौकिक पराक्रम को भूलकर तुम साधारण बंदरों की तरह भयभीत क्यों भाग रहे हो?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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