श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 66: कुम्भकर्ण के भय से भागे हुए वानरों का अङ्गद द्वारा प्रोत्साहन और आवाहन, कुम्भकर्ण द्वारा वानरों का संहार  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  6.66.11 
 
 
तस्य गात्रेषु पतिता भिद्यन्ते बहव: शिला:।
पादपा: पुष्पिताग्राश्च भग्ना: पेतुर्महीतले॥ ११॥
 
 
अनुवाद
 
  उसके शरीर पर गिरने वाली कई शिलाएँ चूर-चूर हो जाती थीं और खिले हुए वृक्ष भी उसके शरीर से टकराते ही टूट-टूटकर पृथ्वी पर गिर जाते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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