विपुल परिघ युक्त कुम्भकर्ण महात्मा दुश्मनों के विनाश के लिए पुरी से बाहर निकले। वह वानरों में बहुत भय उत्पन्न कर रहा था। वह युग के अंत में भगवान कालरुद्र की तरह प्रकट हुए थे।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे पञ्चषष्टितम: सर्ग: ॥ ६ ५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें पैंसठवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ६ ५॥