श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 65: कुम्भकर्ण की रणयात्रा  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  6.65.57 
 
 
विपुलपरिघवान् स कुम्भकर्णो
रिपुनिधनाय विनि:सृतो महात्मा।
कपिगणभयमाददत् सुभीमं
प्रभुरिव किंकरदण्डवान् युगान्ते॥ ५७॥
 
 
अनुवाद
 
  विपुल परिघ युक्त कुम्भकर्ण महात्मा दुश्मनों के विनाश के लिए पुरी से बाहर निकले। वह वानरों में बहुत भय उत्पन्न कर रहा था। वह युग के अंत में भगवान कालरुद्र की तरह प्रकट हुए थे।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे पञ्चषष्टितम: सर्ग: ॥ ६ ५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें पैंसठवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ६ ५॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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