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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 56
श्लोक
6.65.56
ते तस्य घोरं निनदं निशम्य
यथा निनादं दिवि वारिदस्य।
पेतुर्धरण्यां बहव: प्लवङ्गा
निकृत्तमूला इव शालवृक्षा:॥ ५६॥
अनुवाद
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आकाश में गरजते हुए बादलों की तरह ही उस राक्षस के मुंह से निकली भयावह गर्जना सुनकर बहुत सारे वानर जड़ से कटे हुए शाल के पेड़ों की तरह पृथ्वी पर गिर पड़े।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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