श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 65: कुम्भकर्ण की रणयात्रा  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  6.65.54 
 
 
ते दृष्ट्वा राक्षसश्रेष्ठं वानरा: पर्वतोपमम्।
वायुनुन्ना इव घना ययु: सर्वा दिशस्तदा॥ ५४॥
 
 
अनुवाद
 
  देखते ही देखते उस पर्वत के समान बड़े राक्षस को देखते ही सभी बंदर इधर-उधर भाग गए, जैसे हवा के झोंकों से बादल आकाश में इधर-उधर भाग जाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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