श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 65: कुम्भकर्ण की रणयात्रा  »  श्लोक 53
 
 
श्लोक  6.65.53 
 
 
स लङ्घयित्वा प्राकारं पद‍्भ्यां पर्वतसंनिभ:।
ददर्शाभ्रघनप्रख्यं वानरानीकमद्भुतम्॥ ५३॥
 
 
अनुवाद
 
  वह पर्वत के समान ऊँचा था। उसने अपने दोनों पैरों से लंका की दीवार को लांघा और देखा कि मेघों की मोटी परत की तरह वानरों की एक अद्भुत सेना फैली हुई थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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