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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 6: युद्ध काण्ड
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सर्ग 65: कुम्भकर्ण की रणयात्रा
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श्लोक 47
श्लोक
6.65.47
तस्य निष्पततस्तूर्णं कुम्भकर्णस्य धीमत:।
बभूवुर्घोररूपाणि निमित्तानि समन्तत:॥ ४७॥
अनुवाद
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कुम्भकर्ण, बुद्धिमान राक्षस, जैसे ही युद्ध के मैदान की ओर बढ़ा, हर जगह भयावह अपशकुन होने लगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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