श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 65: कुम्भकर्ण की रणयात्रा  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  6.65.44 
 
 
नापराध्यन्ति मे कामं वानरा वनचारिण:।
जातिरस्मद्विधानां सा पुरोद्यानविभूषणम्॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  वन में रहने वाले ये वानर तो मेरा कोई अपराध नहीं कर रहे हैं, इसलिए वे मृत्युदंड के योग्य नहीं हैं। बंदरों की जाति हमारे जैसे लोगों के शहरों और उद्यानों की शोभा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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