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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 65: कुम्भकर्ण की रणयात्रा
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श्लोक 43
श्लोक
6.65.43
अद्य वानरमुख्यानां तानि यूथानि भागश:।
निर्दहिष्यामि संक्रुद्ध: पतङ्गानिव पावक:॥ ४३॥
अनुवाद
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‘राक्षसो! जैसे आग पतंगोंको जलाती है, उसी प्रकार मैं भी कुपित होकर आज प्रधान-प्रधान वानरोंके एक-एक झुंडको भस्म कर डालूँगा॥ ४३॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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