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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 41
श्लोक
6.65.41
धनु:शतपरीणाह: स षट्शतसमुच्छ्रित:।
रौद्र: शकटचक्राक्षो महापर्वतसंनिभ:॥ ४१॥
अनुवाद
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उस समय वह छः सौ धनुष के बराबर विस्तृत और सौ धनुष के बराबर ऊँचा हो गया। उसकी आँखें दो गाड़ी के पहियों के समान दिखाई देती थीं। वह विशाल पर्वत के समान भयंकर दिखाई देता था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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