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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 6: युद्ध काण्ड
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सर्ग 65: कुम्भकर्ण की रणयात्रा
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श्लोक 4
श्लोक
6.65.4
न मर्षयन्ति चात्मानं सम्भावयितुमात्मना।
अदर्शयित्वा शूरास्तु कर्म कुर्वन्ति दुष्करम्॥ ४॥
अनुवाद
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वीर व्यक्ति अपनी तारीफ खुद से नहीं करते। वे केवल अपने कार्यों से अपनी वीरता दिखाते हैं, बातों से नहीं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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