वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 6: युद्ध काण्ड
»
सर्ग 65: कुम्भकर्ण की रणयात्रा
»
श्लोक 26
श्लोक
6.65.26
अङ्गदान्यङ्गुलीवेष्टान् वराण्याभरणानि च।
हारं च शशिसंकाशमाबबन्ध महात्मन:॥ २६॥
अनुवाद
play_arrowpause
हाथों में बाजूबंद, अंगुलियों में अंगूठियाँ, शरीर पर श्रेष्ठ आभूषण और चंद्रमा के समान चमकीला हार-इन सबको उसने महापराक्रमी कुंभकर्ण के अंगों में पहनाया।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.