श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 65: कुम्भकर्ण की रणयात्रा  »  श्लोक 20-21
 
 
श्लोक  6.65.20-21 
 
 
रक्तमाल्यमहादामं स्वतश्चोद‍्गतपावकम्।
आदाय विपुलं शूलं शत्रुशोणितरञ्जितम्॥ २०॥
कुम्भकर्णो महातेजा रावणं वाक्यमब्रवीत्।
गमिष्याम्यहमेकाकी तिष्ठत्विह बलं मम॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  उस शूल में लाल फूलों की बहुत बड़ी माला लटक रही थी और उससे आग की चिंगारियाँ झड़ रही थीं। शत्रुओं के खून से सने हुए उस विशाल शूल को हाथ में लेकर तेजस्वी कुम्भकर्ण ने रावण से कहा - "मैं अकेला ही युद्ध करने जा रहा हूँ। अपनी यह सारी सेना यहीं रहे।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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