श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 65: कुम्भकर्ण की रणयात्रा  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  6.65.17 
 
 
इत्येवमुक्त: संहृष्टो निर्जगाम महाबल:।
राज्ञस्तु वचनं श्रुत्वा योद्धुमुद्युक्तवांस्तदा॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण के ऐसा कहने पर महाबली कुम्भकर्ण बहुत प्रसन्न हुआ। उसने राजा रावण की बात सुनकर उस समय युद्ध के लिए उद्यत होकर लङ्कापुरी से बाहर कदम रखें।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.