श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 63: कुम्भकर्ण का रावण को उसके कुकृत्यों के लिये उपालम्भ देना और उसे धैर्य बँधाते हुए युद्धविषयक उत्साह प्रकट करना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  6.63.5 
 
 
य: पश्चात्पूर्वकार्याणि कुर्यादैश्वर्यमास्थित:।
पूर्वं चोत्तरकार्याणि न स वेद नयानयौ॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
   जो व्यक्ति ऐश्वर्य के मद में चूर होकर पहले किये जाने वाले कार्यों को बाद में करता है और बाद में किये जाने वाले कार्यों को पहले कर देता है, वह नीति और अनीति में अंतर नहीं जानता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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