श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 63: कुम्भकर्ण का रावण को उसके कुकृत्यों के लिये उपालम्भ देना और उसे धैर्य बँधाते हुए युद्धविषयक उत्साह प्रकट करना  »  श्लोक 29-30h
 
 
श्लोक  6.63.29-30h 
 
 
अतीव हि समालक्ष्य भ्रातरं क्षुभितेन्द्रियम्॥ २९॥
कुम्भकर्ण: शनैर्वाक्यं बभाषे परिसान्त्वयन्।
 
 
अनुवाद
 
  उसने देखा कि उसके भाई की सारी इंद्रियाँ अत्यधिक व्याकुल हो गई हैं; इसलिए कुंभकर्ण ने धीरे-धीरे उसे शान्ति देते हुए कहा - ॥२९ १/२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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