श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 63: कुम्भकर्ण का रावण को उसके कुकृत्यों के लिये उपालम्भ देना और उसे धैर्य बँधाते हुए युद्धविषयक उत्साह प्रकट करना  »  श्लोक 25-26h
 
 
श्लोक  6.63.25-26h 
 
 
अस्मिन् काले तु यद् युक्तं तदिदानीं विचिन्त्यताम्।
गतं तु नानुशोचन्ति गतं तु गतमेव हि॥ २५॥
ममापनयजं दोषं विक्रमेण समीकुरु।
 
 
अनुवाद
 
  इस समय जो किया जाना चाहिए, उस पर विचार करें। जो बीत चुका है, उसके लिए बार-बार दुख नहीं करना चाहिए। अपनी वीरता से मेरे अनीतिजनित दुःख को शांत कर दो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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