त्रिषु चैतेषु यच्छ्रेष्ठं श्रुत्वा तन्नावबुध्यते।
राजा वा राजमात्रो वा व्यर्थं तस्य बहुश्रुतम्॥ १०॥
अनुवाद
धर्मा, अर्थ और काम - इन तीनों में धर्मा की सबसे अधिक महत्ता है। इसलिए खास अवसरों पर अर्थ और काम की अनदेखी करके भी धर्मा के पालन में लगा रहना चाहिए। इस बात को भरोसेमंद लोगों से सुनने के बाद भी यदि कोई राजा या राजपुरुष नहीं समझ पाता या समझने के बाद भी उसे स्वीकार नहीं कर पाता तो उसके द्वारा अनेक शास्त्रों का अध्ययन व्यर्थ है।