श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 63: कुम्भकर्ण का रावण को उसके कुकृत्यों के लिये उपालम्भ देना और उसे धैर्य बँधाते हुए युद्धविषयक उत्साह प्रकट करना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  6.63.10 
 
 
त्रिषु चैतेषु यच्छ्रेष्ठं श्रुत्वा तन्नावबुध्यते।
राजा वा राजमात्रो वा व्यर्थं तस्य बहुश्रुतम्॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  धर्मा, अर्थ और काम - इन तीनों में धर्मा की सबसे अधिक महत्ता है। इसलिए खास अवसरों पर अर्थ और काम की अनदेखी करके भी धर्मा के पालन में लगा रहना चाहिए। इस बात को भरोसेमंद लोगों से सुनने के बाद भी यदि कोई राजा या राजपुरुष नहीं समझ पाता या समझने के बाद भी उसे स्वीकार नहीं कर पाता तो उसके द्वारा अनेक शास्त्रों का अध्ययन व्यर्थ है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.