श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 61: विभीषण का श्रीराम को कुम्भकर्ण का परिचय देना, श्रीराम की आज्ञा से वानरों का लङ्का के द्वारों पर डट जाना  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  6.61.40 
 
 
ततो हरीणां तदनीकमुग्रं
रराज शैलोद्यतवृक्षहस्तम्।
गिरे: समीपानुगतं यथैव
महन्महाम्भोधरजालमुग्रम्॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनन्तर हाथों में पत्थरों की चोटियों और पेड़ों को थामे हुए वानरों की भयंकर सेना पर्वत के पास इकट्ठा हो गई। यह सेना देखने में उग्र घटाओं के समूह जैसी लग रही थी, जो पर्वत के निकट आ गई थीं।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे एकषष्टितम: सर्ग: ॥ ६ १॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें इकसठवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ६ १॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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