श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 61: विभीषण का श्रीराम को कुम्भकर्ण का परिचय देना, श्रीराम की आज्ञा से वानरों का लङ्का के द्वारों पर डट जाना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  6.61.27 
 
 
न मिथ्यावचनश्च त्वं स्वप्स्यत्येव न संशय:।
कालस्तु क्रियतामस्य शयने जागरे तथा॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  तुम्हारे द्वारा दिया गया वचन कभी झूठा नहीं होता इसलिए अब इसे सोना ही पडे़गा, इसमें कोई संदेह नहीं है; परंतु तुम इसके सोने और जागने का कोई समय निश्चित कर दो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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