श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 61: विभीषण का श्रीराम को कुम्भकर्ण का परिचय देना, श्रीराम की आज्ञा से वानरों का लङ्का के द्वारों पर डट जाना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  6.61.26 
 
 
प्रवृद्ध: काञ्चनो वृक्ष: फलकाले निकृत्यते।
न नप्तारं स्वकं न्याय्यं शप्तुमेवं प्रजापते॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  प्रजापते! जो सुवर्णरूपी वृक्ष आपने ही लगाया है और उसे बढ़ाया है, उसे फल देने के समय नहीं काटा जाता। यह तो आपका ही नाती है, अतः उसे इस प्रकार शाप देना उचित नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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