श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 61: विभीषण का श्रीराम को कुम्भकर्ण का परिचय देना, श्रीराम की आज्ञा से वानरों का लङ्का के द्वारों पर डट जाना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  6.61.25 
 
 
ब्रह्मशापाभिभूतोऽथ निपपाताग्रत: प्रभो:।
तत: परमसम्भ्रान्तो रावणो वाक्यमब्रवीत्॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  ब्रह्माजी के शाप से अभिभूत होकर वह रावण के सामने ही गिर पड़ा। इससे रावण को घोर भय हुआ और उसने कहा - हे प्रभो! क्या हुआ? आप मेरे सामने गिर क्यों पड़े?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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