श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 59: प्रहस्त की मृत्यु से दुःखी रावण का युद्ध के लिये पधारना, लक्ष्मण का युद्ध में आना, श्रीराम से परास्त होकर रावण का लङ्का जाना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  6.59.14 
 
 
योऽसौ गजस्कन्धगतो महात्मा
नवोदितार्कोपमताम्रवक्त्र:।
संकम्पयन्नागशिरोऽभ्युपैति
ह्यकम्पनं त्वेनमवेहि राजन्॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  राजन! देखिए, यह महापुरुष हाथी की पीठ पर बैठा हुआ है। उसका चेहरा नवोदित सूर्य के समान लाल रंग का है। वह अपने वजन से हाथी के सिर को हिला रहा है और यहाँ आ रहा है। लेकिन तुम उसे अकम्पन जानो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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