श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 58: नील के द्वारा प्रहस्त का वध  »  श्लोक 3-4
 
 
श्लोक  6.58.3-4 
 
 
राघवस्य वच: श्रुत्वा प्रत्युवाच विभीषण:॥ ३॥
एष सेनापतिस्तस्य प्रहस्तो नाम राक्षस:।
लङ्कायां राक्षसेन्द्रस्य त्रिभागबलसंवृत:।
वीर्यवानस्त्रविच्छूर: सुप्रख्यातपराक्रम:॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीरघुनाथजी के वचन सुनकर विभीषण ने इस प्रकार उत्तर दिया – ‘प्रभो! इस राक्षस का नाम प्रहस्त है। यह राक्षसराज रावण का सेनापति है और लंका की एक तिहाई सेना उसको घेरे हुए है। उसका पराक्रम सर्वविदित है। वह अनेक प्रकार के शस्त्रों का ज्ञाता, बल और वीरता से ओतप्रोत और एक शूरवीर है’।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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