तब दुष्ट-बुद्धि प्रहस्त विजय की अभिलाषा से वानरराज सुग्रीव की सेना की ओर बढ़ा और जैसे मरने के लिए पतंगा आग में गिर जाता है, उसी तरह वह तेजी से बढ़ती हुई वानर सेना में प्रवेश करने का प्रयास करने लगा।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे सप्तपञ्चाश: सर्ग: ॥ ५ ७॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें सत्तावनवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ५ ७॥