अकम्पनस्तु शैलाभं हनूमन्तमवस्थितम्।
महेन्द्र इव धाराभि: शरैरभिववर्ष ह॥ ११॥
अनुवाद
देखते ही देखते पर्वत के समान विशाल शरीर वाले हनुमान जी को अपने सामने खड़े देखकर अकम्पन ने उन पर बाणों की वर्षा शुरू कर दी। लग रहा था मानो जैसे देवराज इन्द्र भीषण वर्षा कर रहे हों।