श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 53: वज्रदंष्ट्र का सेना सहित युद्ध के लिये प्रस्थान, वानरों और राक्षसों का युद्ध, अङ्गद द्वारा राक्षसों का संहार  »  श्लोक 23-24
 
 
श्लोक  6.53.23-24 
 
 
केचिदस्त्राणि संत्यज्य बाहुयुद्धमकुर्वत॥ २३॥
तलैश्च चरणैश्चापि मुष्टिभिश्च द्रुमैरपि।
जानुभिश्च हता: केचिद् भग्नदेहाश्च राक्षसा:।
शिलाभिश्चूर्णिता: केचिद् वानरैर्युद्धदुर्मदै:॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  कुछ योद्धा अपने हथियार फेंककर बाहों से युद्ध करने लगते थे। थप्पड़ों, लातों, मुक्कों, पेड़ों और घुटनों से मार खाकर कितने ही राक्षसों के शरीर टूट-फूट गए थे। युद्ध में उन्मत्त बंदरों ने पत्थरों से मार-मारकर कितने ही राक्षसों को चूर-चूर कर दिया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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