श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 52: धूम्राक्ष का युद्ध और हनुमान जी के द्वारा उसका वध  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  6.52.4 
 
 
राक्षसास्त्वभिसंक्रुद्धा वानरान् निशितै: शरै:।
विव्यधुर्घोरसंकाशै: कङ्कपत्रैरजिह्मगै:॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  क्रोध से भरे राक्षसों ने अपने लंबे, चोंचदार, शक्तिशाली और तेज बाणों से वानरों को गहरी चोट पहुँचाई। राक्षसों ने वानरों पर ऐसे बाण बरसाए जो उनके शरीर को भेदकर आर-पार हो गए। वानरों के शरीर में लगे बाणों से खून बहने लगा और वे दर्द से तड़पने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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