तदप्रियं दीनमुखा रावणस्य च राक्षसा:।
कृत्स्नं निवेदयामासुर्यथावद् वाक्यकोविदा:॥ ११॥
अनुवाद
वे बातचीत करने और अप्रिय समाचार बताने में दक्ष थे। उनके चेहरे पर दीनता और दुख की भावना थी। उन निशाचरों ने रावण को वह सारा अप्रिय समाचार यथावत् और विस्तार से बताया।