न च कौतूहलं कार्यं सखित्वं प्रति राघव।
कृतकर्मा रणे वीर सखित्वं प्रतिवेत्स्यसि॥ ५७॥
अनुवाद
वीर रघुनंदन! अपने आप को आपका सखा बताने के पीछे क्या रहस्य है, इसे लेकर चिंतित न हों। जब आप युद्ध में विजयी होंगे, तो आप स्वयं मेरे मित्रवत व्यवहार को समझ जाएंगे।