श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 50: विभीषण को इन्द्रजित समझकर वानरों का पलायन, गरुड़ का आना और श्रीराम लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करके जाना  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  6.50.57 
 
 
न च कौतूहलं कार्यं सखित्वं प्रति राघव।
कृतकर्मा रणे वीर सखित्वं प्रतिवेत्स्यसि॥ ५७॥
 
 
अनुवाद
 
  वीर रघुनंदन! अपने आप को आपका सखा बताने के पीछे क्या रहस्य है, इसे लेकर चिंतित न हों। जब आप युद्ध में विजयी होंगे, तो आप स्वयं मेरे मित्रवत व्यवहार को समझ जाएंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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