श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 50: विभीषण को इन्द्रजित समझकर वानरों का पलायन, गरुड़ का आना और श्रीराम लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करके जाना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  6.50.5 
 
 
विषण्णवदना ह्येते त्यक्तप्रहरणा दिश:।
पलायन्तेऽत्र हरयस्त्रासादुत्फुल्ललोचना:॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  हाँ, ये वानर परम शोकाकुल दिखाई पड़ते हैं, अपने हथियार फेंककर वे विभिन्न दिशाओं में भाग रहे हैं। भय के कारण उनकी आँखें फैली हुई हैं और वे इधर-उधर देख रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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