श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 50: विभीषण को इन्द्रजित समझकर वानरों का पलायन, गरुड़ का आना और श्रीराम लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करके जाना  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  6.50.43 
 
 
यथा तातं दशरथं यथाजं च पितामहम्।
तथा भवन्तमासाद्य हृदयं मे प्रसीदति॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
 
  जैसे देवराज इंद्र और महाराज यमराज के पास जाने पर मेरे पिता महाराज दशरथ और मेरे पितामह राजा अज का हृदय प्रसन्न होता था, वैसे ही आपको पाकर मेरा हृदय हर्ष से खिल उठा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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