वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 6: युद्ध काण्ड
»
सर्ग 50: विभीषण को इन्द्रजित समझकर वानरों का पलायन, गरुड़ का आना और श्रीराम लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करके जाना
»
श्लोक 43
श्लोक
6.50.43
यथा तातं दशरथं यथाजं च पितामहम्।
तथा भवन्तमासाद्य हृदयं मे प्रसीदति॥ ४३॥
अनुवाद
play_arrowpause
जैसे देवराज इंद्र और महाराज यमराज के पास जाने पर मेरे पिता महाराज दशरथ और मेरे पितामह राजा अज का हृदय प्रसन्न होता था, वैसे ही आपको पाकर मेरा हृदय हर्ष से खिल उठा है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.