श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 50: विभीषण को इन्द्रजित समझकर वानरों का पलायन, गरुड़ का आना और श्रीराम लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करके जाना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  6.50.20 
 
 
एवं विलपमानं तं परिष्वज्य विभीषणम्।
सुग्रीव: सत्त्वसम्पन्नो हरिराजोऽब्रवीदिदम्॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  तब हृदय से विभीषण को गले लगाते हुए, सत्त्वसंपन्न वानरराज सुग्रीव ने उनसे इस प्रकार कहा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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