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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 6: युद्ध काण्ड
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सर्ग 50: विभीषण को इन्द्रजित समझकर वानरों का पलायन, गरुड़ का आना और श्रीराम लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करके जाना
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श्लोक 17
श्लोक
6.50.17
शरैरिमावलं विद्धौ रुधिरेण समुक्षितौ।
वसुधायामिमौ सुप्तौ दृश्येते शल्यकाविव॥ १७॥
अनुवाद
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शरों से व्याप्त ये दोनों शरीरों से आच्छादित हो गये हैं। दोनों भाई खून से नहाये हुए हैं और पृथ्वी पर सोये हुए ऐसे यह दोनों राजकुमार शल्यकाविव नामक काँटों से भरे हुए साही नामक जन्तु के समान दिखायी देते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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