श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 50: विभीषण को इन्द्रजित समझकर वानरों का पलायन, गरुड़ का आना और श्रीराम लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करके जाना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  6.50.16 
 
 
भ्रातृपुत्रेण चैतेन दुष्पुत्रेण दुरात्मना।
राक्षस्या जिह्मया बुद्धॺा वञ्चितावृजुविक्रमौ॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  वे दोनों वीर सरलतापूर्वक अपने पराक्रम को प्रकट कर रहे थे। परंतु भाई के इस दुरात्मा और कुपुत्र ने अपनी कुटिल राक्षसी बुद्धि के द्वारा इन दोनों के साथ धोखा किया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.