श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 50: विभीषण को इन्द्रजित समझकर वानरों का पलायन, गरुड़ का आना और श्रीराम लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करके जाना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  6.50.15 
 
 
इमौ तौ सत्त्वसम्पन्नौ विक्रान्तौ प्रियसंयुगौ।
इमामवस्थां गमितौ राक्षसै: कूटयोधिभि:॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  हाय! युद्ध में खुशी पाने वाले तथा बल और पराक्रम संपन्न ये दोनों भाई राम और लक्ष्मण छल-कपट से युद्ध करने वाले राक्षसों द्वारा ऐसी विभत्स अवस्था में पहुंचा दिये गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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