श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 49: श्रीराम का सचेत हो लक्ष्मण के लिये विलाप करना और स्वयं प्राणत्याग का विचार करके वानरों को लौट जाने की आज्ञा देना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  6.49.25 
 
 
कृतं हि सुमहत्कर्म यदन्यैर्दुष्करं रणे।
ऋक्षराजेन तुष्यामि गोलाङ्गूलाधिपेन च॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  मैं गवाक्ष, ऋक्षराज जाम्बवान और तुम सब लंगूरों से बहुत प्रसन्न हूँ। तुम सबने युद्ध में जो महान पुरुषार्थ किया है, वह दूसरों के लिए बहुत कठिन था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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