श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 48: सीता का विलाप और त्रिजटा का उन्हें समझा-बुझाकर श्रीराम-लक्ष्मण के जीवित होने का विश्वास दिलाना  »  श्लोक 20-21
 
 
श्लोक  6.48.20-21 
 
 
न शोचामि तथा रामं लक्ष्मणं च महारथम्।
नात्मानं जननीं चापि यथा श्वश्रूं तपस्विनीम्॥ २०॥
सा तु चिन्तयते नित्यं समाप्तव्रतमागतम्।
कदा द्रक्ष्यामि सीतां च लक्ष्मणं च सराघवम्॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  "मैं श्रीराम और महारथी लक्ष्मण के लिए इतना शोक नहीं करती जितना अपनी तपस्विनी सासुजी के लिए कर रही हूँ। वे प्रतिदिन यही सोचती होंगी कि वह दिन कब आएगा जब वनवास का व्रत समाप्त करके वन से लौटे हुए श्रीराम, लक्ष्मण और सीता को मैं देखंगी।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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