श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 48: सीता का विलाप और त्रिजटा का उन्हें समझा-बुझाकर श्रीराम-लक्ष्मण के जीवित होने का विश्वास दिलाना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  6.48.15 
 
 
शोधयित्वा जनस्थानं प्रवृत्तिमुपलभ्य च।
तीर्त्वा सागरमक्षोभ्यं भ्रातरौ गोष्पदे हतौ॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  इन दोनों भाइयों ने मेरे लिए जन्मभूमि की खबर ली और मेरे समाचार पाकर अक्षोभ्य समुद्र को पार किया, परंतु हाय! इतना सब कर लेने के बाद थोड़ी-सी राक्षस सेना के द्वारा, जिसका हराना उनके लिए गोपद तलवार के समान सरल था, वे दोनों मारे गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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