श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 48: सीता का विलाप और त्रिजटा का उन्हें समझा-बुझाकर श्रीराम-लक्ष्मण के जीवित होने का विश्वास दिलाना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  6.48.13 
 
 
समग्रयवमच्छिद्रं पाणिपादं च वर्णवत्।
मन्दस्मितेत्येव च मां कन्यालाक्षणिका विदु:॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  मेरा हाथ-पैर लाल रंग का है और बहुत अच्छा लगता है। मेरे हाथों और पैरों में जौ की आकृति वाली रेखाएँ हैं। जब मैं अपनी उंगलियों को आपस में जोड़ता हूँ, तो उनमें कोई अंतर दिखाई नहीं देता। मुझे मंद मुस्कान वाली कन्या के लक्षण मानने वाले पंडित बताते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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